Class 9 Sanskrit Chapter 02 Hindi Translation with Question Answers
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द्वितीयः पाठः - स्वर्णकाकः
प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित “विश्वकथाशतकम्” नामक कथासंग्रह से लिया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। यह वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ-साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन, एक सुनहले पंखों वाले कौबे के माध्यम से किया गया है।
पुरा कस्मिश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याश्चैका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान्निक्षिप्य पुत्रीमादिदेश - सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष। किञ्चित्कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुडीय तामुपाजगाम।
हिंदी अनुवाद:
एक बार की बात है एक गाँव में एक गरीब बूढ़ी औरत रहती थी। उनकी एक विनम्र और सुंदर बेटी भी थी। एक बार माँ ने एक बर्तन में चावल डाले और अपनी बेटी को आदेश दिया कि वह धूप में चिड़ियों से चावल की रक्षा करे। थोड़ी देर बाद एक अजीब कौवा उसके पास आया ।
नैतादुशः स्वर्णपक्षो रजतचल्चुः स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते। स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, मा शुचः। सूर्योदयात्प्राग् ग्रामाद्बहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वयागन्तव्यम्। अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि। प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभ।
हिंदी अनुवाद:
ऐसा सोने के पंख तथा चाँदी की चोंच वाला सोने का कौवा उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसे चावल खाते हुए तथा हंसते हुए देखकर बालिका (लड़की) रोने लगी। उसको हटाती हुई लडकी ने प्रार्थना की “तुम चावलों को मत खाओ।” मेरी माता अत्यन्त निर्धन है। सोने के पंखों वाले कौवे ने कहा- “तुम दुःखी मत होओ।” तुम कल सूर्य उगने से पहले गाँव से बाहर पीपल वृक्ष के पीछे आ जाना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। प्रसन्न हुई बालिका को (रात में) नींद भी नहीं आई।
सूर्योदयातूर्वमेव सा ...................... भवनमाससाद|
हिंदी अनुवाद:
(अगले दिन) सूर्य उगने से पूर्व ही वह लड़की वहाँ उपस्थित हो गई। वहाँ वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्य से चकित हो गई, क्योंकि वहाँ एक सोने का बना महल था। जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिडकी में से बालिका को अत्यन्त हर्षपूर्वक कहा- अहो! तुम आ गईं, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढी उतारता हूँ। तुम बताओ-सीढ़ी सोने की हो या चाँदी की अथवा ताँबे की? कन्या बोली-“मैं एक निर्धन माता की पुत्री हूँ, ताँबे की सीढी से ही आ जाऊँगी।” परन्तु (सोने के कौवे के द्वारा उतारी हई) सोने की सीढ़ी से वह सोने के महल (स्वर्णमय भवन) में पहुँच गई।
चिरकालं भवने .................. शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ।
हिंदी अनुवाद:
बहुत काल तक, महल में सजी अनोखी वस्तुओं को देखकर बालिका हैरान हो गई। उसको थका हुआ देखकर कौवा बोला-“पहले तुम थोड़ा प्रात:कालीन नाश्ता कर लो, बताओ तुम सोने की थाली में भोजन करोगी या फिर चाँदी की थाली में अथवा ताँबे की थाली में? बालिका ने कहा “मैं निर्धन, ताम्बे की थाली में ही खा लूंगी।” लेकिन तब वह बालिका आश्चर्य से चकित हो गई सोने के कौवे ने उसे सोने की थाली में भोजन परोसा। बालिका ने आज तक ऐसा स्वादिष्ट भोजन नहीं खाया था। कौवा बोला—”हे बालिका! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं पर रहो, परन्तु (घर पर) तुम्हारी माता अकेली है। अत: तुम शीघ्र ही अपने घर चली जाओ।” ।
इत्युक्त्वा काकः.......................... तदहिनाद्धनिका च सञ्जाता।
हिंदी अनुवाद:
ऐसा कहकर कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें निकालकर उस लड़की को कहा- ”बालिका! तुम स्वेच्छा से कोई एक सन्दूक ले लो।” बालिका ने सब में छोटी सन्दूक लेते हुए कहा- “मेरे | चावलों का इतना ही मूल्य है।” घर पर आकर जब उसने उस सन्दूक को खोला तो उसमें बहुमूल्य हीरों को देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुई और उस दिन से वह धनी हो गई।
तस्मिन्नेव ग्रामे एकाऽपरा ................................. ताम्रभाजने ह्यकारयत्।
हिंदी अनुवाद:
उसी गाँव में एक अन्य लोभी बुढ़िया रहा करती थी। उसकी भी एक पुत्री थी। (पहली वृद्धा की समृद्धि को देख) ईर्ष्यावश उसने सोने के कौवे का रहस्य पता लगा लिया। उसने भी धूप में चावलों को रखकर अपनी पुत्री को रखवाली हेतु लगा दिया। उसी तरह से सोने के पंख वाले कौवे ने चावल खाते हुए, उसको भी वहीं पर बुला लिया। सुबह वहाँ जाकर वह लड़की कौवे को धिक्कारती हुई जोर से बोली- “अरे नीच कौवे! लो मैं आ गई, मुझे मेरे चावलों का मूल्य दो।” कौआ बोला-“मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ।” तो तुम बताओ कि तुम सोने की बनी सीढ़ी से आओगी, चाँदी की सीढी से या फिर ताम्बे की सीढ़ी से? गर्वभरी (घमण्डयुक्त) बालिका ने कहा “मैं तो सोने की बनी सीढ़ी से आऊँगी”, किन्तु सोने के कौवे ने उसके लिए ताम्बे की बनी सीढ़ी ही दी। सोने के कौवे ने उसे भोजन भी ताम्बे के बर्तन में ही कराया।
प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात्तिखो................................. सा लोभं पर्यत्यजत्।
हिंदी अनुवाद:
लौटने (विदाई) के समय सोने के कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें लाकर उसके सामने रखीं। लोभ से परिपूर्ण मन वाली उस लड़की ने उनमें से सबसे बड़ी सन्दूक ली। घर पर आकर वह लालची लड़की जब उस सन्दूक को खोलती है तो उसमें वह एक भयंकर काले साँप को देखती है। लालची बालिका को लालच का फल मिल गया। उसके पश्चात् उसने लोभ को बिल्कुल त्याग दिया।
शब्दार्थाः
न्यवसत् - (अवसत् ) - रहता था/रहती थी
दुहिता - (सुता ) - पुत्री
स्थाल्याम् - (स्थालीपात्र) - थाली में
खगेभ्य: - (पक्षिभ्य: ) - पक्षियों से
समुड्डीय - (उत्प्लुत्य ) - उड़कर
उपाजगाम - (समीपम् आगतवान् ) - पास पहुँचा
स्वर्णपक्षः - (स्वर्णमयः पक्षः) - सोने का पंख
रजतचज्चुः - (रजतमयः चञ्चुः) - चाँदी की चोंच
तण्डुलान् - (अक्षतान्) - चाबलों को
निवारयन्ती - (वारणं कुर्वन्ती) - रोकती हुई
मा शुचः - (शोकः मा कुर् ) - दुःख मत करो
प्रोवाच - (अकथयत्) - कहा
प्रहर्षिता - (प्रसन्ना) - खुश हुई
प्रासादः - (भवनम्) - महल
गवाक्षात् - (वातायनात्) - खिड़की से
सोपानम् - (सोपानम्) - सीढी
अवतारयामि - (अवतीर्ण करोमि) - उतारता हूँ
आससाद - (प्राप्नोत्) - पहुँचा
विलोक्य - (दुष्ट्वा) - देखकर
प्राह - (उवाच) - कहा
प्रातराश: - (कल्यवर्तः ) - सुबह का नाश्ता
व्याजहार - (अकथयत्) - कहा
पर्यवेषितम् - (पर्यवेषणं कृतम्) - परोसा गया
महार्हाणि - (बहुमूल्यानि) - बहुमूल्य
लुब्धा - (लोभवशीभूता) - लोभी
निर्भत्सयन्ती - (भर्त्सनां कुर्वन्ती) - निन्दा करती हुई
पर्यत्यजत् - (अत्यजत्) - छोड दिया
अभ्यासः (पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर):
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (क) माता काम् आदिशत्? (ख) स्वर्णकाकः कान् अखादत्? (ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते? (घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता? (ङ) लोभाविष्टा बालिका कीदृशीं मञ्जूषां नयति?
उत्तराणि -
(क) पुत्रीम (ख) तण्डुलान् (ग) स्वर्णमयः (घ) मञ्जूषा (ङ) बृहत्तमाम्
1. अधोलिखिताना प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्? उत्तर- निर्धनाया: वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा च आसीत्। (ख) बालिकया पूर्व कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्? उत्तर-बालिकया पूर्व स्वर्णकाकः न दृष्टः आसीत्। (ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत्? उत्तर-निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत्। (घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता? उत्तर-बालिका स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता। (ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत् कीदृशं च प्राप्नोत्? उत्तर-गर्विता बालिका स्वर्णसोपानम् अयाचत् परं ताम्रमयं प्राप्नोत्।
2.(क) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत - (i) पश्चात् (ii) हसितुम् (iii) अधः (iv) श्वेतः (v) सूर्यास्त: (vi) सुप्त: उत्तर- (i) पूर्वम् (ii) रोदितुम् (iii) उपरि (iv) कृष्णः (v) सूर्योदयः (vi) प्रबुद् (ख ) सन्धिं कुरुत- (i) नि + अवसत् (ii) सूर्य + उदयः (iii) वृक्षस्य + उपरि (iv) हि + अकारयत् (v) च + एकाकिनी (vi) इति + उक्त्वा (vii) प्रति + अवदत् (viii) प्र + उक्तम् (ix) अत्र + एव (x) तत्र + उपस्थिता (xi) यथा + इच्छम् उत्तर- (i) नि + अवसत् = न्यवसत् (ii) सूर्य + उदयः = सूर्योदयः (iii) वृक्षस्य + उपरि = वृक्षस्योपरि (iv) हि + अकारयत् = हुयकारयत् (v) च + एकाकिनी = चैकाकिनी (vi) इति + उक्त्वा = इत्युक्त्वा (vii) प्रति + अवदत् = प्रत्यवदत् (viii) प्र + उक्तम् = प्रोक्तम् (ix) अत्र + एव = अत्रैव (x) तत्र + उपस्थिता = तत्रोपस्थिता (xi) यथा + इच्छम् = यथेच्छम् 3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रज्ननिर्माणं कुरुत- (क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत् उत्तर-ग्रामे का अवसत्? (ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्। उत्तर-कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्? (ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता। उत्तर-कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता? (घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्। उत्तर-बालिका कस्याः दुहिता आसीत्? (ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिन्ञातवती। उत्तर-लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती? 4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत ( पाठात् चित्वा वा लिखत )- (क) हस् + शतृ (ख) भक्ष् + शत (ग) वि + लोकृ + ल्यप् (घ) नि + क्षिप् + ल्यप् (ङ) आ + गम् + ल्यप् (च) दृश् + क्त्वा (छ) शी + क्त्वा (ज) वृद्ध + टा (झ) सुत + टाप् (ञ) लघु + तमप् उत्तर- (क) हस् + शतृ = हस्न (ख) भक्ष् + शत = भक्षयन् (ग) वि + लोकृ + ल्यप् = विलोक्य (घ) नि + क्षिप् + ल्यप् = निक्षिप्य (ङ) आ + गम् + ल्यप् = आगत्य (च) दृश् + क्त्वा = दृष्ट्वा (छ) शी + क्त्वा = शयित्वा (ज) वृद्ध + टा = वृद्धा (झ) सुत + टाप् = सुता (ञ) लघु + तमप् = लघुतमम् 5. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं कुरुत- (क) हसन्तम् (ख) रोदितुम् (ग) वृद्धा (घ) भक्षयन् (ङ) दृष्ट्वा (च) विलोक्य (छ) निक्षिप्य (ज) आगत्य (झ) शयित्वा (ञ) सुता (ट) लघुतमम् उत्तर- (क) हसन्तम् = हस् + शतृ (ख) रोदितुम् = रुद् + तुमुन् (ग) वृद्धा = वृद्ध + टाप् (घ) भक्षयन् = भक्ष् + शत् (ङ) दृष्ट्वा = दृश् + क्त्वा (च) विलोक्य = वि + लोक + ल्यप् (छ) निक्षिप्य = नि + क्षिप् + ल्यप् (ज) आगत्य = आ + गम् + ल्यप् (झ) शयित् वा = शी + क्त्वा (ञ) सुता = सुत + टाप (ट) लघुतमम् = लघु + तमप्
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