Hindi translation of Sanskrit  for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः( Wyayam Sarwada Pathya )


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CBSE Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3  व्यायामः सर्वदा पथ्यः  Hindi Translation

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पाठसारः

प्रस्तुत पाठ 'सुश्रुतसंहिता' के 'चिकित्सा स्थान' में वर्णित 24वें अध्याय से संकलित है।

सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता सुश्रुत है, जो एक बहुश्रुत आचार्य हुए हैं।

यहाँ व्यायाम का लक्षण प्रस्तुत करते हुए तज्जनित लाभों का वर्णन है। पाठ का सार इस प्रकार है-

मनुष्य को व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम के पश्चात् मालिश की जानी चाहिए। इस व्यायाम से शरीर

में स्फूर्ति उत्पन्न होती है तथा अङ्ग-प्रत्यङ्ग सुगठित व सुंदर बनते हैं। शरीर हल्का तथा स्वच्छ हो जाता है।

व्यायाम के द्वारा सर्दी, गर्मी, प्यास, थकावट आदि को सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। व्यायाम

से परम स्वास्थ्य मिलता है।

शरीर के मोटापे को कम करने में व्यायाम से बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य व्यायाम करता

है, उसे रोग नहीं सताते हैं। व्यायाम करने वाले व्यक्ति को बुढ़ापा नहीं सताता है तथा शरीर का मांस भी

स्थिर हो जाता है। जो व्यक्ति व्यायाम से पसीना बहाता है, उसके पास रोग नहीं फटकते हैं।

मनुष्य को अपनी शक्ति सेआधा व्यायाम करना चाहिए।

इस प्रकार व्यायाम मनुष्य के लिए सर्वथा हितकर है।

 

(क) शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् ।

तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः॥1॥

अनुवाद- शरीर को चेष्टा प्रदान करने वाला कार्य व्यायाम कहलाता है। (मनुष्य) इसे करके अच्छी प्रकार

तथा सुखपूर्वक शरीर की मालिश करे।

भावार्थ- व्यायाम के पश्चात् हमें शरीर की मालिश करनी चाहिए।

 

(ख) शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता।

दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥2॥

अनुवाद- (व्यायाम के द्वारा) शरीर की वृद्धि, चमक, अंगों का सुगठित होना, भूख का लगना, आलस्य

रहित होना, स्थिरता, लघुता तथा सफाई (ये होते हैं।)

भावार्थ- व्यायाम के अनेक लाभ हैं।

 

(ग) श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता।

आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥

अनुवाद- व्यायाम से परिश्रम, थकान, प्यास, गर्मी, सर्दी को सहन करने की शक्ति तथा परम आरोग्य

भी उत्पन्न होता है।

भावार्थ- व्यायाम से थकावट, प्यास व सर्दी-गर्मी को सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है तथा आरोग्य

उत्पन्न होता है।

 

(घ) न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम् ।

न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥

अनुवाद- व्यायाम के समान मोटापे को दूर करने के लिए दूसरा कोई नहीं है। व्यायाम करने वाले मनुष्य

को शत्रु (अर्थात् रोग) बलपूर्वक नहीं कुचल डालते हैं।

भावार्थ- ब्यायाम से शरीर हल्का होता है।

 

 

(ड़) न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।

स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥

अनुवाद- व्यायाम करने वाले मनुष्य को अचानक आक्रमण करके वृद्धावस्था प्राप्त नहीं होती है। व्यायाम में तल्लीन होने वाले व्यक्ति का मांस स्थिर होता है।

भावार्थ- व्यायाम से मनुष्य शीघ्र बूढ़ा नहीं होता है।

 

(च) व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च ।

व्याघयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः।

वयोरूपगुणैर्लीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥

अनुवाद- व्यायाम के कारण पसीने से लथपथ शरीर वाले तथा पैरों को ऊपर उठाने वाले के पास रोग

(उसी प्रकार) नहीं फटकते हैं, जैसे गरुड़ के पास सर्प। अवस्था, रूप तथा गुणों से हीन व्यक्ति को भी (व्यायाम) सुंदर बना देता है।

भावार्थ- व्यायाम करने वाले को रोग सताते नहीं हैं।

 

(छ) व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।

विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥7॥

अनुवाद- व्यायाम को करते हुए व्यक्ति का अच्छी प्रकार पचा हुआ, अच्छी प्रकार न पचा हुआ अथवा

विरुद्ध भोजन भी दोषरहित पच जाता है

भावार्थ- व्यायाम से भोजन अच्छी प्रकार पच जाता है।

 

 

(ज) व्यायामो हि सदा पव्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ।

स च शीते बसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥

अनुवाद- व्यायाम घृत आदि खाने वाले बली लोगों के लिए सदा हितकर होता है। वह उन (लोगों) के

लिए सर्दी व वसन्त में सर्वाधिक हितकर होता है।

भावार्थ- व्यायाम करने वाले को घी का सेवन करना चाहिए।

 

(झ) सर्वेष्वृतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।

बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्योऽन्यथा ॥9॥

अनुवाद- अपना हित चाहने वाले मनुष्यों को सभी ऋतुओं में प्रतिदिन शक्ति से आधा व्यायाम करना

चाहिए। इससे अधिक (व्यायाम) मनुष्य को मार डालता है।

भावार्थ- अपनी शक्ति से आधा व्यायाम करना चाहिए।

 

(ज) हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।

व्यायामं कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥10॥

अनुवाद- जब व्यायाम को करते हुए प्राणी के हृदय स्थान में टिकी हुई वायु मुख को प्राप्त हो जाती है।

तो उसे शक्ति का आधा परिमा जानना चाहिए।

भावार्थ- मनुष्य को अपने बल से आधा व्यायाम करना चाहिए।

 

(ट) वयोवलशरीराणि देशकालाशनानि च ।

समीक्ष्य  कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥11॥

अनुवाद- (मनुष्य) अवस्था, शक्ति और शरीर तथा देश, काल और भोजन के विषय में अच्छी प्रकार

विचार करके व्यायाम करे, वरना वह रोग को प्राप्त करता है।

भावार्थ- मनुष्य को शरीर के बल, स्थान, समय तथा भोजन आदि के विचारपूर्वक व्यायाम करना चाहिए।

 

 

 

 


9 Comments

  1. thank you for publish Hindi translation
    If it is available in English then pls send

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  2. If Translation is available in English then we need it

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  3. Sorry to Say But It is Available in hindi language only.

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  4. thank you so much. for posting this i missed some classes so it troubled me .

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  5. Thanks for post this hindi translation of this ch 😇😇

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