Class 9th Sanskrit Ch.12 (वाड़मनः प्राणस्वरूपम्) in Hindi Explanation with Ncert Solution
द्वादशः पाठः
वाड़मनः प्राणस्वरूपम्
(वाणी, मन और प्राण का स्वरूप)
Hindi Explanation :-
श्वेतकेतु - भगवन्! मैं श्वेतकेतु प्रणाम करता हूँ।
आरुणि - पुत्र! दीर्घायु होओ।
श्वेतकेतु - भगवन्! कुछ पूछना चाहता हूँ।
आरुणि - पुत्र! तुम्हें आज क्या पूछना है?
श्वेतकेतु - महाराज! मैं पूछना चाहता हूँ कि यह मन क्या है?
आरुणि - पुत्र! खाए हुए अन्न का जो सबसे लघु (पदाथ) है, वह मन है।
श्वेतकेतु - प्राण क्या है?
आरुणि - पान किए गए जल का जो सबसे लघु (अंश) है, वह प्राण है।
श्वेतकेतु - महाराज! यह वाणी क्या है?
Hindi Explanation :-
आरुणि - पुत्र! खाए हुए तेज का जो सबसे लघु (अंश) है, वह वाणी है। मन अन्नमय है, प्राण जलमय है तथा वाणी तेजोमय है-ऐसा जानना चाहिए।
श्वेतकेतुः - भगवन्! मुझे पुनः समझाइए।
आरुणि - हे पुत्र! ध्यानपूर्वक सुनो। मथे जाते हुए दही का जो लघुतम (अंश) होता है, वह ऊपर उठता है। वह घी होता है।
श्वेतकेतु - महाराज! आपने घी की उत्पत्ति के रहस्य की व्याख्या कर दी है। पुनः सुनना चाहता हूँ।
आरुणि - हे सौम्य, इसी प्रकार खाए जाते हुए अन्न का जो सर्वाधिक लघु (अंश) होता है, वह ऊपर उठता है। वह मन होता है। समझ गए हो या नहीं ?
श्वेतकेतु - महाराज अच्छी प्रकार समझ गया हूँ।
Hindi Explanation :-
आरुणि - पुत्र! पान किए जाते हए जल का जो सर्वाधिक लघु अंश है, वह ऊपर उठता है, वह प्राण होता है।
श्वेतकेतु - भगवन्! वाणी के विषय में भी व्याख्या करें।
आरुणि - सौम्य! खाए जाते हुए तेज का जो सर्वाधिक लघु अंश है, वह ऊपर उठता है। वह निश्चय ही वाणी होती है।
पुत्र! उपदेश के अन्त में तुम्हें बताना चाहता हूँ कि अन्नमय मन होता है, जलमय प्राण होता है तथा तेजोमय वाणी होती है। और भी, जैसा अन्न आदि को (मनुष्य) ग्रहण करता है, वैसा ही उसका चित्त आदि होता है-यह मेरे उपदेश का सार है।
पुत्र! इस समूचे (ज्ञान) को हृदय में धारण कर लो।
श्वेतकेतु - जैसी आपकी आज्ञा, महाराज! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आरुणि - पुत्र! दीर्घायु होओ। हम दोनों द्वारा पढ़ा हुआ तेजस्विता से युक्त हो।
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