Hindi translation of Sanskrit for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 Budhirbalawati Sada बुद्धिर्बलवती सदा
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Summary
किसी गाँव में 'बुद्धिमती' नामक एक स्त्री रहती थी। एक बार वह अपने दो पुत्रों के साथ अपने पिता
के घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उसे उसकी ओर आता हुआ एक बाघ दिखाई पड़ा। उसने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए एक अभिनय किया। उसने अपने बच्चों को धमकाते हुए कहा-'तुम एक-एक बाघ खाने के लिए झगड़ा क्यों कर
रहे हो? आज एक बाघ से ही काम चला लो।' यह सुनकर वह बाघ डरकर भाग गया।
उस भागते हुए बाघ को एक गीदड़ कहने लगा- 'तुम बड़े मूर्ख हो। तुम एक मनुष्य से डर कर भाग रहे
हो। मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। उस पर विश्वास करके वह बाघ गीदड़ को साथ लेकर उस स्त्री की ओर चल
पड़ा। अपनी ओर आते हुए बाघ को देख उस स्त्री ने अभिनय के साथ गीदड़ को फटकारते हुए कहा- 'तुमने
तीन बाघ लेकर आने का वादा किया था। आज एक क्यों लाए हो?' यह सुनकर वह बाघ वहाँ से भाग गया।
इस प्रकार उस स्त्री ने अपने और अपने दोनों पुत्र की जान की रक्षा की।
(क) अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रःवसति स्म।
एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
मार्गे गहनकानने सा एक व्याघ्रं ददर्श । सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्टर्यात पुत्रौ चपेटया
प्रहत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः?अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम् । पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।"
अनुवाद- देउल नामक एक गाँव था। वहां राजसिंह नामक राजकुमार रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में गहरे जंगल में उसने एक बाघ को देखा। उसने आते हुए बाघ को देखकर धृष्टता से अपने पुत्रों को थप्पड़ मारकर कहा- "एक एक बाघ खाने के लिए किसलिए झगड़ा कर रहे हो? यह तो एक ही (बाघ) है। इसे बाँटकर खा लो। बाद में किसी दूसरे को खोज लेंगे।"
(ख) इति श्रुत्वा याप्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः ।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमौल्लोके मुच्यते महतो भयात् ॥
भयाकुतं यात्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह - -'भवान् कुतः भयात् पलायितः?'
व्याघ्र: - गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम् । यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
श्रृगाल: - व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्र: - प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
अनुवाद- यह सुनकर यह कोई ‘बाघ की हत्यारिन' (व्याघ्रघातिनी) है-ऐसा मानकर डर से व्याकुल बाघ
भाग गया। वह सुन्दर स्त्री बाघ के भय से अपनी बुद्धि के द्वारा मुक्त हुई। अन्य बुद्धिमान् व्यक्ति भी संसार में
महान् भय से मुक्त हो जाता है।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त गीदड़ हँसता हुआ कहने लगा-'आप भय से क्यों भाग खड़े हुए?
बाघ - जाओ, जाओ, गीदड़। तुम भी गुप्त स्थान पर (चले जाओ)। क्योंकि 'बाघ हत्यारिन' ऐसा
जो शास्त्रौं में सुना जाता है, वह मुझे मारने को तैयार है, परन्तु उसके आगे से मैं शीघ्र प्राण हथेली पर रखकर भाग आया हूँ।
गीदड़ - हे बाघ! तुमने बड़ी आश्चर्य की बात कही है कि तुम मनुष्य से डरते हो?
बाघ - आँखों के सामने ही अपने साथ मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुए दो पुत्रों को थप्पड़
मारती हुई को मैंने देखा है।
(ग) जम्बुकः - स्वामिन् ! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र ! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते
यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्र: - श्रृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात् ।
जम्बुकः - यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम् ।
स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। श्रृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गुल्या तर्जयन्त्युवाच-
अनुवाद -
गीदड़ - हे स्वामी! जहाँ वह धूर्त स्त्री बैठी है, वहाँ चलिए। हे बाघ! वहाँ पहुँचने पर तुम्हारे सामने
भी यदि देख ले तो तुम मुझे मार डालना।
बाघ - हे गीदड़! यदि तुम मुझे छोड़कर जाते हो तो शर्त टूट जाएगी।
गीदड़ - यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो।
वह बाघ वैसा करके जंगल की ओर चल पड़ा। गीदड़ के साथ पुनः आते हुए बाघ को दूर से देखकर बुद्धिमती सोचने लगी
'गीदड़ के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे बचूँ?'
परन्तु हाजिरजवाब वह (महिला) गीदड़ को आक्षेप करती हुई तथा अंगुली से फटकारती हुई कहने लगी-
(घ) रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्यायैकमानीय कथं यासि वदाधुना।।
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा ।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एव उच्यते-
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अनुवाद- अरे धूर्त! पहले तुमने विश्वास दिलाकर मुझे तीन बाघ देने का कहा था, (परन्तु) आज एक
को ही लेकर क्यों आए हो? अब बोल।
ऐसा कहकर भयंकर बाघ हत्यारिन शीघ्र भाग गई। जिसके गले में गीदड़ बँधा हुआ था, ऐसा वह बाच
भी अचानक भाग गया। हे देवी! सदा और सभी कार्यों में बुद्धि बलवान होती है।
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा
अभ्यासः
(1) अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुहं प्रति चलिता?
उत्तरम्- (क) बुद्धिमती पुत्रदयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
(ख) व्याघ्रः कि विचार्य पलायितः?
(ख) इयं व्याघ्रमारी इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः ।
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
(ग) लोके महतः भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(घ) जम्बुकः किं वदन व्याघ्रस्य उपहासं करोति?
(घ) भवान कुतो भयात् पलायितः इति वदन जम्बुका व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती?
उत्तरम्- (ङ) बुद्धिमती शृगालम् उक्तवती-रे धूर्त, इतो गच्छ।'
(2) स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण कुरुत-
(क) तन्त्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्री प्रहृतवती।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूतः शृगालः अवदत् ।
(घ) त्वम् मानुषात् विभेषि।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तरम्- (क) तत्र क: नाम राजपुत्रः वसति स्म?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?
(ग) किं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?
(घ) त्वम् कस्मात् विभेषि?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम्?
(3) अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत-
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्
(घ) मार्ग सा एक व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्र विभज्य भुज्यताम् ।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता।
(छ) 'त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तरम्- (क) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुगृहं प्रति चलिता।
(ख) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ग) व्याघ्र दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-'अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम् ।
(घ) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ङ) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत् ।
(च) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
(छ) 'त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
(4) सन्चिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
(क) पितुर्गृहम् = …… + …...
(ख) एकैकः = …… + …….
(ग) …….. = अन्यः + अपि
(घ) ……… = इति + उक्त्वा
(ङ) ….…. = यत्र + आस्ते
उत्तरम्-
(क) पितुर्गृहम् = पितुः + गृहम्।
(ख) एकैकः = एक + एकः।
(ग) अन्योऽपि = अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा = इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्त = यत्र + आस्ते
(5) अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत-
(क) ददर्श - ( दर्शितवान्, दृष्टवान् )
(ख) जगाद - (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ - (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् - (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते - (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते - (पश्यति, इच्छति
उत्तरम्-
पदानि अर्थ:
(क) ददर्श - दृष्टवान्
(ख) जगाद - अकथयत्
(ग) ययौ - गतवान्
(घ) अत्तुम् - खादितुम्
(ङ) मुच्यते - मुक्तो भवति
(च) ईक्षते - पश्यति
(6) (अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत-
(क) वनम् - ……..
(ख) शृगालः - ……..
(ग) शीघ्रम् - ……..
(घ) पत्नी - ……..
(ङ) गच्छसि - …….
उत्तरम्-
(अ) पदानि पर्यायाः
(क) वनम् काननम्
(ख) श्रृगालः जम्बुकः
(ग) शीघ्रम् तूर्णम्
(घ) पत्नी भार्या
(ङ) गच्छसि यासि।
(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत-
(क) प्रथमः - ……..
(ख) उक्त्वा - ……..
(ग) अधुना - ……...
(घ) अवेला - ……….
(ङ) बुद्धिहीना - ……….
उत्तरम्-
पदानि विपरीतार्थक शब्द
(क) प्रथमः द्वितीयः
(ख) उक्त्वा श्रुत्वा
ग) अधुना पश्चात्
(घ) अवेला वेला
(ङ) बुद्धिहीना बुद्धिमती
(7) (अ) प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत-
(क) चलितः
(ख) नष्टः
(ग) आवेदितः
(घ) दृष्ट:
(ङ) गतः
(च) हतः
(छ) पठितः
(ज) लब्धः
उत्तरम-
(अ) (क) चलितः चल् क्त
(ख) नष्टः नश् क्त
(ग) आवेदितः आ विद णिच् क्त
(घ) दृष्ट: दृश् क्त
(ङ) गतः गम् क्त
(च) हतः हन् क्त
(छ) पठितः पठ् क्त
(ज) लब्धः लभ् क्त।
(आ) उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च 'क्तवतु' प्रत्ययस्य प्रयोग:
कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं कुरुत-
यथा- तया अहं हन्तुम् आरब्धः। - सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
(क) मया पुस्तकं पठितम्।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्।
(ग) सीतया लेखः लिखितः।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्।
उत्तरम-
(आ) (क) मया पुस्तकं पठितम्। - अहं पुस्तकं पठितवान्।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। - रामः भोजनं कृतवान्।
(ग) सीतया लेखः लिखितः। - सीता लेखं लिखितवती।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। - अश्वः तृणं भुक्तवान्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। - त्वं चिन्नं दारतान।
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ReplyDeleteThanks for helping
ReplyDeletePlzz upload chap 3 class 10 sanskrit
ReplyDeleteI have already uploaded CBSE Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः Hindi Translation.
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Thnx.
ReplyDeletethank u
ReplyDeleteCann you upload some other chapters too
ReplyDeleteThank u so much 🙏
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteThaankse 😍
ReplyDeleteCan you upload for chapter 4
ReplyDeleteThank u
ReplyDeleteTq🙏
ReplyDeletePlz reply me of budgirbalvati sadaa iti pathasya vidha asti
ReplyDeletenice
ReplyDeleteThx
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteThankyou
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