Hindi translation of Sanskrit for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला
Summary
प्रस्तुत पाठ महाभारत के 'वन' पर्व से उद्धृत
किया गया है। यह कथा न केवल मनुष्यों अपितु सभी
जीव-जन्तुओं के प्रति समदृष्टि की भावना प्रदर्शित
करती है। जिसका सार निम्नलिखित हैं-
एक
किसान दो बैलों के द्वारा खेत जोत रहा था। उन दोनों में एक बैल अत्यन्त दुर्बल व शीघ्र
चलने में
असमर्थ
था। लेकिन वह किसान उससे निर्दयतापूर्वक हल ढोने का कार्य कर रहा था। वह दुर्बल बैल
गिर
पड़ा।
यह दृश्य देखकर वृषभों की माता सुरभि रोने लगी। जब इन्द्र ने पूछा कि आपके रोने का
कारण क्या
है।
तो वह बोली- हे वासव (इन्द्र) मैं अपने उस दुर्बल पुत्र की दैन्यता पर रो रही हूँ।
वह दुर्बल है, यह जानते
हुए
भी किसान उसको अनेक प्रकार से प्रताड़ित कर रहा है।
इन्द्र
ने कहा- हे कल्याणी! संसार में हजारों पुत्र हैं आपके, फिर इस पुत्र पर इतना प्रेम
क्यों?
सुरभि
बोली- सत्य है मेरी हजारों सन्तानें हैं। लेकिन दीन-हीन पुत्र पर माँ की ममता स्वभावतः
अधिक
हो
ही जाती है। मैं इस पुत्र पर विशेष रूप से आत्मवेदना का अनुभव कर रही हूँ। यह सुनकर
इन्द्र का
हृदय
भी द्रवित हो गया। इन्द्र ने प्रचण्ड हवा के साथ, बादलों की गर्जना के साथ घनघोर वर्षा
करके भूमि
को
जल से प्लावित कर दिया। इस प्रकार किसान खेत जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों
को लेकर
घर
चला गया।
1. कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात । क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत् । तथापि वृषः नोत्थितः।
शब्दार्थ-
- कृषकः - किसान
- बलीवाभ्याम् – दो बैलों से
- क्षेत्रकर्षणम् - खेत की जुताई
- जवेन तीव्र गति से
- तोदनेन -कष्ट देने से
- नुद्यमानः - धकेला जाता हुआ, हाँका जाता हुआ
- हलमूड़वा हल उठाकर
- पपात गिर गया
- कृषीवलः - किसान
- उत्यापयितुम् - उठाने के लिए,
- वृषः - बैल
- नोत्थितः - नहीं उठा।
अनुवाद- कोई किसान दो बैलों के द्वारा खेत की जुताई
कर रहा था। उन दोनों बैलों में एक बैल शरीर से दुर्बल और तीव्रगति से चलने में असमर्थ
था। इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को कष्ट देकर जबरन धकेल रहा था। वह बैल हल उठाकर चलने
में असमर्थ था इसलिए भूमि पर गिर गया। क्रोधित किसान ने उस बैल को उठाने के लिए अनेक
बार प्रयत्न किया। फिर भी बैल खड़ा न हो सका।
2. भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां
मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा
सुराधिपः तामपृच्छत्- “अयि शुभे! किमेवं रोदिषि?
उच्यताम्" इति। सा च
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते
त्रिदशाधिपः।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन
रोदिमि कौशिक!॥
“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।
सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः
कृच्छ्रेण भारमुद्दहति । इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत् ।
शब्दार्य-
- धेनूनाम् – गायों की,
- नेत्राभ्याम् – दोनो आँखो से
- अश्रूणि - आँसू
- आविरासन् – आने लगे
- सुराधिपः – देवताओं के राजा (इन्द्र),
- उच्यताम् – कहें, कहा जाए,
- वासव – इन्द्र,
- कृच्छ्रेण - कठिनाई से,
- इतरमिव - दूसरो के समान,
- धुरम् - धुर को (जुए को),
- वोढुम् - ढोने के लिए,
- त्रिदशाधिपः - देवताओ का राजा (इन्द्र),
- प्रत्यवोचत् - जवाब दिया,
- जानन्नपि - जानते हुए भी
अनुवाद- भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि के नेत्रों से आँसू बहने लगे। सुरभि की इस अवस्था को देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उससे पूछा "हे देवि! इस प्रकार क्यों रो रही हो? कहिए"। वह बोली- हे देवताओ का राजा इन्द्र! उसका कष्ट किसी को दिखाई नहीं दे रहा। हे कौशिक ! मैं तो पुत्र के विषय में सोचकर दुःखी हो रही हूँ और इसीलिए रो रही हूँ।
"हे वासव! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ। वह दुर्बल है यह जानते हुए भी किसान उसको अनेक प्रकार से कष्ट दे रहा है। वह कठिनाई से भार ढो रहा है। वह दूसरे बैलों के समान धुर (जुए) को ढोने में समर्थ नहीं है। क्या यह आप नहीं देख रहे हैं?" ऐसा जवाब दिया।
3. "भद्रे! नूनम् । सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्-
यदि पुत्रसहस्र मे, सर्वत्र
सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका
कृपा ॥
“बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम् । तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि । यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्वलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव । तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव" इति । सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत् । स च तामेवमसान्त्वयत्- “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।"
शब्दार्थ-
- नूनम् - निश्चय ही
- सहस्रम - हजार,
- वात्सल्यम् - वात्सल्य (प्रेमभाव),
- अपत्यानि - सन्तान
- विशिष्य - विशेषकर,
- वेदनाम् - कष्ट को,
- तुल्यवत्सला - समान रूप से प्यार करने वाली,
- सुतः - पुत्र,
- भ्रशम् - बहुत अधिक,
- आखण्डलस्य - इन्द्र का,
- असान्त्वयत् - सान्त्वना दी (दिलासा दी)।
अनुवाद- “हे कल्याणि! निश्चय ही। हजारों से भी अधिक
विद्यमान पुत्रों में से इस पुत्र पर इतना प्रेम
क्यों?
इस प्रकार इन्द्र के पूछने पर सुरभि बोली-
यद्यपि
मेरे हजारों पुत्र हैं और सब पर मेरी ममता समान है। फिर भी हे शक्र (इन्द्र) ! विद्यमान
दीन-हीन
(दुर्बल)
पुत्र पर अधिक कृपा है।
“ये
सत्य है कि मेरी बहुत सन्तानें हैं। फिर भी मैं इस पुत्र पर विशेषकर आत्मवेदना का अनुभव
कर रही
हूँ।
क्योंकि यह दूसरों से दुर्बल है। सभी सन्तानों पर माँ का प्रेम बराबर ही होता है। फिर
भी कमजोर पुत्र पर
माँ
की कृपा सहज रूप से अधिक होती है।"
सुरभि के वचनों को सुनकर विस्मित इन्द्र का भी हृदय
अत्यधिक द्रवित हो गया। और उन्होंने सुरभि को सान्त्वना दी- “हे वत्से ! जाओ। सब सही
ही होगा।
4. अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः
समजायत। पश्यतः एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः
हर्षतिरेकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा
गृहमगात् ।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी
तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपादर्हदया
भवेत् ।।
शब्दार्थ-
- अचिरात् - शीघ्र ही,
- चण्डवातेन - तीव्र हवा से,
- मेघरवैः बादलो की गर्जना से,
- प्रवर्षः - वर्षा,
- जलोपालवः - जल संकट,
- कर्षणविमुख - जोतने के काम से विमुख होकर,
- वृषभौ - दोनो बैलो को,
- अगात् - गया
अनुवाद- शीघ्र ही तीव्र हवा और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने लगी। देखते ही देखते सब जगह जल ही जल हो गया। इससे किसान अत्यधिक प्रसन्न होकर खेत जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों को लेकर घर चला गया। यद्यपि माता के हृदय में अपनी सभी सन्तानो के प्रति समान प्रेम होता है, पर जो कमजोर सन्तान होती है उसके प्रति उसके मन में अतिशय प्रेम होता है।
10th thanks sir
ReplyDeleteThis is very good anuvad
ReplyDeleteThanks bro
ReplyDeleteYou're welcome 😊
ReplyDeletethanks sir for such a helpful anuvad/ details
ReplyDeleteOk
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